Pushkar History - Vaishnav Dharmsala Pushkar

देव भूमि पुष्कर का इतिहास



तीर्थ शिरोमणी पुष्कर राज का महात्म्य

तीर्थ - मानवी अन्तःकरण में सत्प्रवृतियों, सदिच्छाओं का बीजारोेपण एवं विकास करने में समर्थ दिव्य धारा प्रवाहित करते है । 

आध्यात्मिक महत्ताः-  आध्यत्कि दृष्टि से भारत विश्व का गुरू कहा जाता है। भारत की इस पवित्र धरा पर 24 अवतारों का प्राक्टय हुआ । मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम भगवान श्री कृष्ण ने इस पावन अवनि पर मानव रूप में अवतार लेकर आदर्श जीवन प्रस्तुत कर मृत्युलोक के प्राणियों को प्रेरणा दी । यहां का चप्पा चप्पा, कण-कण प्रभु से स्पर्शित है तथा इस धरा की रज वंदन योग्य है । भारत देश के कोने-कोने में देवों के तीर्थ स्थल है । इन तीर्थों में पुष्कर तीर्थ का अत्यन्त प्राचीन धार्मिक महत्व है । 
पù पुराण  के अनुसार भारत में 33 करोड देवताओं का निवास है तथा गंगा (माता) प्रयाग (राजा) तथा पुष्कर तीर्थ तीर्थों का गुरू है । शास्त्रों के अनुसार पुष्कर तीर्थ महानतम है । इसका महत्व निम्न प्रकार वर्णित है:- 


पुष्कर की प्राकृतिक स्थिति -  पवित्र नाग पर्वत की सुरम्य श्रृंखलाओं / श्रेणियों के मध्य, साम्प्रदायिक सद्भाव की धार्मिक नगरी अजमेर के समीप, पावन अरण्य में सुशोभित निखिल विश्व की हिन्दू आस्था का प्रमुख धर्मस्थल, जगत पिता ब्रह्मा जी की तपस्या एवं यज्ञ की पावन भूमि मनोरम वृक्षावलियों से आच्छादित तीर्थ शिरोमणी पुष्कर विद्यमान है । 


पुष्कर तीर्थ नामकरण - पù पुराण के अनुसार सत युग में ब्रह्माजी के मन में एक पवित्र विचार आया कि मृत्यु लोक में सभी देवों के देवालय / तीर्थस्थल है। यहां मेरा भी स्थान स्थापित होना चाहिए । ऐसे सद्विचार के साथ उनके श्रीमुख से स्वस्ति (मंगल-मंगल) शब्द उच्चारित हुए । उन्होंने अपने कर में कमल पुष्प लेकर उसे धरती पर फेंका जो इस पुष्कर अरण्य क्षेत्र में तीन पवित्र स्थलों पर गिरा, वहां पवित्र पावन निर्मल स्वच्छ जल प्रस्फुटित हुआ वे स्थल हैं (1) ब्रह्म पुष्कर (2) मध्यपुष्कर (3) कनिष्क पुष्कर  । इन तीनों स्थानों का प्राचीन काल से बड़ा धार्मिक महत्व है । ब्रह्माजी के हाथ (कर) से पुष्प गिराने पर जहां स्वतः जल प्रकट हुआ वह स्थल पुष्कर कहलाया । यह जल पवित्र, रोग विनाशक, पाप मोचक तथा मोक्ष दायक माना गया है । 

    पौराणिक कथन के अनुसार मुगल बादशाह श्री औंरगजेब हिन्दु मन्दिरों का विध्वंश करते हुए पुष्कर पहुंचे । समीप क्षेत्र में बने हिन्दु मन्दिर तोड़े व वापिस लौटते समय कनिष्क पुष्कर पहुंच कर थकान मिटाने हेतु वहां हाथ मुंह धोये, उसके जल के प्रभाव से उसकी दाढ़ी मूँछ सफेद हो गयी वह वृद्ध लगने लगा । इस चमत्कार के बाद बादशाह ने इसे देव चमत्कार बताया तथा नमन किया । तब से कनिष्क पुष्कर का नाम बूढ़ा पुष्कर पुकारा जाने लगा जो आज भी प्रचलन में है । 

ब्रह्माजी द्वारा यज्ञ - पù पुराण में यह भी उल्लेख है कि लोककर्ता जगत पिता ब्रह्मा जी ने यहां यज्ञ करने की इच्छा जतायी तथा पुष्कर अरण्य में एक योजन भूमि यज्ञ हेतु चयनित की । ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा जी को मंडप बनाने, पवन देव को सभी को निमन्त्रण देने का कार्य सौंपा । ऋषि मुनियों को आमन्त्रण देकर मंडप में सुशोभित किया । भृगृऋषि को आचार्य पुलस्त्य, मरीची, अष्टावक्र, गीक, अत्रि, सनातन, वरूण नारद गर्गमुनि, भारद्वाज, गौतम शाडिल्य आदि मुनि मंडप में अधिष्ठित हुए । 

    इन्द्र को ब्राह्मणों के पांव धोने, स्नान कराने, कुबेर को धन वस्त्र का दान, शिव को गणों द्वारा यज्ञ की रक्षा, वासुदेव को उपदेश, बृहस्पति को ब्राह्मणों के चयन का आदेश दिया । 
    नारद को माता सावित्री को बुलाने भेजा लेकिन यज्ञ का समय मुहूर्त सन्निकट देख ब्रह्माजी ने इन्द्र को आदेश दिया कि आप आकाश मार्ग से जाकर पुष्कर अरण्य भूमि से कोई गोप कन्या ले आवें, इन्द्र गए तथा एक दूध दही बेचने वाली गोप बाला को ले आए । ब्रह्माजी ने उसे गोमुख से पवित्र कर पुष्कर स्नान कराकर पवित्र कर गायत्री नाम से यज्ञ में बैठाया । 
    सावित्री जी का यज्ञ में आगमन एवं क्रोध से ब्रह्मा विष्णु व महेश सहित गायत्री, ब्राह्मणों , गाय, सभी को श्राप देकर माता श्री सावित्री यहां से गमन कर कलकता में माॅं काली के रूप में प्रकट हुई । ब्रह्माजी ने सावित्री को कहा इस पुष्कर का पावन जल आप पर सैदव चढ़ेगा  तभी आपकी पूजा होगी । इसे साकार करने हेतु माॅं सावित्री पुनः पुष्कर लौट आयी तथा रूष्ट होकर रत्नगिरी पहाड़ी पर विराजित हुई जहां आज भी विद्यमान है । 

    ब्रह्माजी ने यह भी कहा कि इस पवित्र पुष्कर जल से जो प्राणी स्नान करेगा, मेरे दर्शन करेगा, इस  धरती पर आकर दान पुण्य जप, तप यज्ञ तथा धार्मिक कार्य करेगा उसके सब पापों का नाश एवं अन्त में मोक्ष का फलदायी होगा तथा अन्त में बैकुण्ठ में वास करेगा तब से इन तीनों पुष्कर स्थलों में स्नान, दर्शन का भारी महत्व बना हुआ है । 

कार्तिक स्नान का महत्व - पुष्कर का जल पापों का नाश, स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला है । ब्रह्माजी के निवेदन पर पांच दिवस कार्तिक सुदी एकादशी से कार्तिक सुदी पूर्णिमा तक सभी देव पुष्कर राज में विराजते है ं इन तिथियों में तीर्थ यात्रीगण पुष्कर, देव दर्शन एक योजन भूमि की परिक्रमा, माॅं सरस्वती नदी का स्नान, ऋषियों के स्थानों के दर्शन एवं पूजा कार्य कर पुण्य को अर्जित करते हैं । 

    शास्त्रों के कथनानुसार सत युग से अद्यतन यही कार्तिक स्नान पूर्व पुष्कर तीर्थ में धार्मिक उत्साह के साथ निष्पादित होता रहा है । इस समय सभी देवों, ऋषि मुनियों की उपस्थिति की आस्था श्रद्धा से यहाॅं लाखों प्राणी आते है तथा यहां 5 दिवसीय कार्तिक मेला लगता है । यह धर्म कर्म एवं दानपुण्य का समय है यहाॅं गाय, वस्त्र, अन्न, स्वर्ण, कन्या का दान देने का भारी महत्व है । 

मंदिर एवं घाटों की स्थापना - तीर्थराज पुष्कर में शास्त्रों के अनुसार 500 मन्दिर एवं 52 घाट निर्मित है । ब्रह्मघाट, वराह घाट, गऊ घाट तीन प्रमुख घाट हैं समय-समय पर राजा महाराजाओं, धर्मशील व्यक्तियों ने इनका निर्माण एवं जीर्णोद्वार करवाया - मराठा काल में यज्ञ स्थल पर ही ब्रह्मा जी का मन्दिर, वराह मन्दिर तथा अटपटेश्वर महादेव (लिंग) बनवाया जो सतयुग से पूजित है । 

    पुष्कर अरण्य क्षेत्र में त्रेता युग में भगवान श्री राम तथा द्वापर में पाॅंचों पाण्डव पधारें थे यह भूमि उनके पद चिन्हों / पद धूलि से भी पवित्र हुई । गया तीर्थ भी स्वयं यहां आए , यहाॅं पितृ तर्पण आदि भी होते है यहाॅं गया कुण्ड, पंच कुण्ड, नंदा सरस्वती, गऊमुख, लक्ष्मीपोल सावित्री मन्दिर, गायत्री शक्ति पीठ व पाप मोचनी, चामुण्डा माता (शक्ति पीठ) महाप्रभु मन्दिर, विश्व कर्मा मन्दिर, 108 महादेव, कपालेश्वर, महादेव गणपति मन्दिर, नृसिंह मन्दिर, झूलेलाल मन्दिर, प्राचीन रंगनाथ मन्दिर, नवीन रमा वैकुण्ठ मन्दिर (ब्रांगड मन्दिर) बालमुकन्द आश्रम, (नवखण्ड) मन्दिर आदि सैकड़ों मन्दिर दर्शनीय है । जहाॅं वर्ष पर्यन्त लाखों श्रद्धालु श्रद्धा से आकर पुष्कर स्नान, देव दर्शन, 12 कोस परिक्रमा करके पुण्य अर्जित करते है । 

विशेष पर्व - कार्तिक मेला, सक्रान्ति पर्व, अमावस्या स्नान, वैशाली स्नान, कार्तिक पंच तीर्थ स्नान, ग्रहण झूलोत्सव आदि पर विशेष संख्या में भक्त आते हैं । 

पुष्कर अरण्य का महत्व - पुष्कर क्षेत्र की एक योजन भूमि अत्यन्त पवित्र मानी जाती है । सतयुग से आज तक इसका वही महत्व है जो सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी ने यज्ञ संपादन के पश्चात् देवों, ऋषियों मुनियों ब्राह्मणों को बताया । यहाॅं का वातारण धर्ममय है । यहाॅं आकर मन को शान्ति मिलती है । यहाॅं का कण कण पवित्र है एवं यहाॅं के प्राकृतिक वातारण में देवीय गुण विद्यमान है । स्नान दर्शन के बिना यहाॅं की भूमि पर आकर कुछ क्षण बिताने तथा देव भ्ूामि के दर्शन - नमन मात्र से मानव का कल्याण- मोक्ष होता है ऐसी मंगल पावन भूमि को कोटिश नमन । 

    सिक्खों के गुरू, गुरू गोविन्द सिंह जी ने पुष्कर आकर गऊ घाट पर गुरू ग्रन्थसाहिब का पाठ कर स्नानादि किया तथा ब्रह्मा जी के दर्शन किए । इंग्लैण्ड की महारानी क्वीन मेरी सहित अनेक धर्म गुरू, राजनेता सभी धर्मों /मतों के लोग यहाॅं स्नान दर्शन पूजा करने आते है । पुष्कर राज में गऊ घाट व वराह घाट (मुख्य घाट) पर सदैव प्रातः एवं सांयकाल भव्य आरती संकीर्तन के साथ होती है सांयकाल दीपदान का दृश्य मनोरम होता है । इसमें हजारों भक्त जन सम्मिलित होते हैं । 

विशेष - 
    पुष्कर राज तीर्थ में पहंुचना दुष्कर है, तप करना व दान देना दुष्कर है और पुष्कर में निवास करना अत्यधिक दुष्कर है दुर्लभ है । 

    ऐसे में जगतपिता ब्रह्माजी की धर्म नगरी पावन कल्याणमयी वंदनीय तीर्थ पुष्कर में अखिल भारतीय वैष्णव (चतुः सम्प्रदाय) विकास परिषद् एवं विकास ट्रस्ट का प्रथम राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन एवं अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण (च.स.) भवन एवं शैक्षणिक ट्रस्ट पुष्कर के अधीन विशाल एवं भव्य वैष्णव धर्मशाला का होना सम्र्पूण भारतवर्ष के वैष्णव समाज के लोगों के लिये बड़े गर्व का विषय है ।